हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन का खतरा

हिन्द महासागर क्षेत्र में सैन्य शक्ति बढ़ाने के इरादों का खंडन करने के बावजूद चीन इस क्षेत्र में नौसैनिक शक्ति बढ़ा रहा है। समुद्री दस्युओं के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर चीन ने एक नौसैनिक सुविधा की स्थापना के लिए सेशेल्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इससे पहले चीन ने दो Y-12 जासूसी विमान इसी उद्देश्य के लिए दिए थे।
2004 में हुए एक सुरक्षा समर्थन समझौते के तहत दो चीनी फ्रिगेटों ने सेशेल्स का दौरा किया था और उसके नौसैनिक जहाज अस्पताल Peace-Ark में नवंबर 2010 में द्वीप के बीमार लोगों का इलाज हुआ। सोमालिया तट और अदन की खाड़ी में समुद्री दस्यु-रोधी अभियानों की आवश्यकता के विषय में कोई संदेह नहीं है लेकिन यह एक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास होना चाहिए न कि केवल चीनी वाणिज्यिक पोतों को सुरक्षा प्रदान किया जाए। इससे बढ़कर चीन को हिन्द महासागर के इस महत्वपूर्ण हिस्से में रणनीतिक पहुंच मिल गई है। एक नौसैनिक अड्डा केवल समुद्री दस्यु विरोधी अभियानों के लिए नहीं होकर शक्ति विस्तार का एक प्रयास भी हो सकता है। सोमाली तट पर कुछ चीनी युद्धपोत 2008 से ही तैनात हैं लेकिन एक नौसैनिक बेस अवश्य ही छदमआवरण में नौसैनिक शक्ति के विस्तार का प्रयास है। चीन ने मारीशस और मालदीव के साथ भी सैन्य गठबंधन का प्रयास किया है। बहरहाल चीन का सबसे महत्वपूर्ण कदम पाकिस्तान में गहरे समुद्री बंदरगाह ग्वादर का निर्माण है। इसका उद्देश्य निश्चित ही पाकिस्तान और चीन का सैन्य गठजोड़ है जिससे चीनी सेनाएं अल्प सूचना पर पाकिस्तान की मदद कर सकें। चीन का एक रणनीतिक नीति दस्तावेज 90 के दशक में जारी हुआ, जिसमें कहा गया था कि चीन को हिन्द महासागर क्षेत्र के देशों के साथ सैन्य कूटनीति को लागू करना चाहिए। उसमें खुले तौर पर कहा गया था कि छोटे देशों की सेनाओं को अल्प कीमत के सैन्य साजो-सामान के सहारे मित्र बनाया जा सकता है। उन्हें थोड़ी आर्थिक मदद देकर अड्डे हासिल करना भी किसी राजनैतिक प्रबंध की तुलना में आसान होगा। हिंद महासागर परिधि के देशों से मित्रता संधियां और अड्डों की स्थापना चीन की नई बड़ी नीति है, जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा है। इस समय भारत को घेरने के लिए चीन दक्षिणी वलय, हिंद महासागर अफ्रीकी महाद्वीप और तेल समृद्ध देशों से संपर्क बढ़ाने में लगा है। चीन की हिन्द महासागर की रणनीति सबसे पहले 2004 में सामने आई। कई सैन्य दस्तावेजों में खाड़ी और हिंद महासागर में चीन के प्रभुत्व वाले क्षेत्र का निर्माण और उसे एशिया प्रशांत क्षेत्र से जोड़ने पर जोर दिया गया।
चीन की बांग्लादेश में बंदरगाह सुविधाएं हासिल करने का प्रयास बार-बार विफल रहा है। म्यांमार और श्रीलंका में भी अभी तक उसे कोई निश्चित अड्डा हासिल नहीं हुआ है। लेकिन हिंद महासागर में सैन्य अड्डे स्थापित करने के चीन के निरंतर प्रयास और नए घटनाक्रम भारत के लिए खतरे का संकेत हैं, जिसकी अनदेखी भारत नहीं कर सकता है। हिंद महासागर के प्रमुख समुद्री परिवहन व्यापार मार्ग को चीन के प्रभुत्व में जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। चीन इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में तीव्र नौसैनिक विस्तार कर रहा है जिससे वह नाकेबंदी और इलाके से अन्य देशों को बाहर धकेलने की शक्ति हासिल कर सके। चीनी नौसेना चयनित संकरे क्षेत्रों में नाकेबंदी के लिए मिसाइलों और अन्य हथियारों को तैनात कर रही है।
चीन ने हिन्द महासागर में सैन्य अड्डों की स्थापना की एक दृढ़ नीति का प्रारंभ किया है। यद्यपि वह शांतिपूर्ण इरादों पर जोर देता है और वादा किया है कि वह विदेशों में अपने सैनिकों को केवल संयुक्त राष्ट्र के नियंत्रण में ही भेजेगा। लेकिन उसने कहीं भी चीन के रणनीतिक हितों के लिए युद्ध के अधिकार पर भी बल दिया है और इसके अनुरुप विभिन्न प्रकार के भविष्य के युद्धों की तैयारी में लगा है। चीन अब मानता है कि एक विश्व युद्ध संभव है और क्षेत्रीय स्तर पर किसी स्थानीय युद्ध में जीत के लिए उसे तैयार रहना होगा। वह अपनी सेनाओं को किसी भी वैश्विक या क्षेत्रीय चुनौती का सामना करने के लिए प्रशिक्षित कर रहा है।
हिंद महासागर का सैन्यीकरण तटीय राष्ट्रों के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न कर रहा है, जो निम्नलिखित हैं-
 अपनी विस्तृत तट सीमा के कारण भारत समुद्री डकैती, आतंकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी, छोटे हथियारों की तस्करी जैसे खतरों का सामना कर रहा है। यह जोखिम सघन समुद्री गतिविधियों के कारण और बढ़ जाता है। भारत में समुद्री गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले नियमों और प्रशासनिक ढांचे की भी कमी है।
 भारत की दूसरी समुद्र तटीय चुनौती और दुस्वप्न भारतीय तटों की सुरक्षा और भारतीय प्रायद्वीप के समुद्री संचार मार्ग की सुरक्षा है। नौपरिवहन का दायरा मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों से लेकर सुपर टैंकरों और मालवाहक जहाजों तक फैला हुआ है। विदेशी ट्रॉलरों की भारतीय समुद्री सीमा और में EEZ सघन शिकार गतिविधियों और सघन नौपरिवहन से अरब सागर-बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में समृद्ध और विविध समुद्री जीवन संतुलन कमजोर हुआ है।
 भारत की तीसरी समुद्र तटीय चुनौती मुख्य भूमि के संगठित अपराधिक गिरोहों और सीमा से लगे देशों, श्रीलंका, म्यामांर, बांग्लादेश और पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों के मध्य गठजोड़ है। मुंबई पर आतंकवादी हमला इसका प्रमाण है। अपराधी गिरोह विदेशी संपर्कों का उपयोग नशीले पदार्थों, छोटे हथियारों, विस्फोटकों आदि की तस्करी के लिए करते हैं।
 भारत की चैथी समुद्र तटीय चुनौती व्यापक संहार के हथियारों के पुर्जों आदि की तस्करी को रोकना है। पहले भी ऐसा व्यापार पाकिस्तान, चीन और उत्तर कोरिया को जोड़ता रहा है।
 भारत की पांचवीं चुनौती अपनी समुद्री कमजोरियों को दूर करना और तटीय आबादी को जागरुक बनाना है।
स्ट्रिंग ऑफ पल्स
इस प्रयास में
(a) भारत की घेराबंदी
(b) हिन्द महासागर पर नियंत्रण
(c) तेल स्रोतों तक पहुंच और
(d) अफ्रीका में पहुंच
इस प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए चीन ने सिट्टवे सोमालिया और सेशेल्स में अड्डों का निर्माण करके भारत को घेरने का प्रयास किया है।
हम्बनटोटा हिन्द महासागर में नियंत्रण स्थापित करने और चीन द्वारा भारत को नजदीक से घेरने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। हम्बनटोटा की भू-रणनीतिक अवस्थिति इसे दक्षिण चीन सागर-मलक्का जलडमरुमध्य-अरब सागर समुद्री मार्ग की सुरक्षा के लिए चीन को एक आधार बिन्दु प्रदान करती है।
हम्बनटोटा के रणनीतिक निहितार्थ
1. हम्बनटोटा एक गहरे समुद्र का बंदरगाह है, जिसे बहुस्तरीय बंदरगाह में परिवर्तित किया जा सकता है। यह एक नौसैनिक बंदरगाह बन सकता है जो अगला ग्वादर होगा। यहां पर चीनी युद्धपोत ठहर सकते हैं।
2. हम्बनटोटा एक आदर्श स्थल है जहां असैनिक कंटेनर, तेल टैंकर, और युद्धपोत एक साथ रुक सकते हैं।
3. हम्बनटोटा चीन के स्ट्रिंग ऑफ पल्स का महत्वपूर्ण मोती होगा। यह पारसेल, हेनान, सिट्वे, कोको द्वीप, चटगांव जैसे चीनी अड्डों के समान है।
4. हम्बनटोटा ऐसे स्थान पर है जहां से भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार पर निगाह रखी जा सकती है।
5. हम्बनटोटा एक सीमित अग्रगामी उपस्थिति के लिए विश्राम सुविधा का काम कर सकता है।
6. बंदरगाह के पूर्णतः संचालित होने पर क्षेत्र में चीनी परमाणु पनडुब्बियों की गतिविधियां और हम्बनटोटा का उनका दौरा एक वास्तविकता में बदल सकता है।
उत्तर अरब सागर पर नियंत्रण
पाकिस्तान ने इस क्षेत्र की स्थिरता को चीन के हाथों गिरवी रख दिया है। पाकिस्तान के लिए चीन की भागीदारी एक वैध भू-रणनीतिक स्थिति है, जिससे उसे वैश्विक सम्मान और इस्लामाबाद का विश्वास हासिल है। इसके कारण पाकिस्तान ने उत्तरी अरब सागर और अफगानिस्तान में भारत को विकट स्थिति में डाल दिया है। इसके कारण चीनी पनडुब्बियां वहां पहुंच रही हैं। अब युद्धपोत निर्माण सौदे की घोषणा पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन कर रहा है। इसी कारण पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों की मदद करने पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को उस पर लागू करने की भारत की योजना पर चीन पानी फेरता है। इसी के परिणामस्वरूप इस्लामाबाद में चीनी लोगों का संख्या इतनी बढ़ गई है कि रेस्तरां अब अपने मेन्यू मंदारिन भाषा में भी रखने लगे हैं।
समुद्री रेशम मार्ग को पुनर्जीवन
ली केकियांग ने बु्रनेई में 16वीं आसियान-चीन शिखर बैठक में समुद्री रेशम मार्ग के पुनर्जीवन (MSR) का खाका पेश किया था और शी जिनपिंग ने अक्टूबर 2013 में इंडोनेशिया की संसद में अपने भाषण के दौरान इसका उल्लेख किया था।
प्राचीन समुद्री मार्ग को पुनर्जीवित करने का प्रयास व्यापार समृद्धि और शांति को बढ़ावा देने की दिशा में नए चीनी नेतृत्व की प्रथम वैश्विक रणनीति है। MSR प्राचीन मैत्री दर्शन का नवीन विस्तार होगा। इसमें रेशम मार्ग के साथ-साथ बंदरगाह शहरों के निर्माण द्वारा दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीका के साथ चीन की मुख्य भूमि के आर्थिक संबंधों में सुधार पर जोर दिया गया है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है कि यह विश्व में चीन की भू-रणनीतिक स्थिति में सुधार की इच्छा से प्रेरित है।
इसमें मुख्य जोर मजबूत आर्थिक सहयोग, संयुक्त ढांचागत परियोजनाओं में करीबी सहयोग, सुरक्षा सहयोग में वृद्धि, और समुद्री अर्थव्यवस्था, पर्यावरण तकनीक और वैज्ञानिक सहयोग पर दिया गया है।
चीन ने व्यापक परिवहन तंत्र-सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और ऊर्जा गलियारों के व्यापक निर्माण के माध्यम से अपनी भू-राजनीतिक स्थिति के सुधार के कदम वृहत् रुप से उठाएं हैं।
MSR कुछ निश्चित रणनीतिक उद्देश्यों के लिए भी सहायक होगा जैसे-मित्रों और ग्राहकों को समर्थन देने में, अन्य नौसैनिक शक्तियों को अप्रभावी बनाने में, या कम से कम अपनी नौसैनिक शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए। नौसैनिक शक्ति अधिक लचीली होती हैं और उनकी दृश्यता अत्यधिक होती है। इस प्रकार प्रस्तावित MSR का उद्देश्य स्पष्टतः रणनीतिक है।
प्राचीन रेशम मार्ग
 दूरीः 4,000 मील से अधिक, चीन से लेकर भूमध्य सागर तक विस्तृत
 यह मार्ग चीन, भारत, फारस, अरब, बैक्ट्रिया और रोम को जोड़ता था।
 प्राचीन व्यापार मार्ग का स्वर्ण काल 2 ई. पू. से 13वीं सदी तक था।
 चीनी रेशम के व्यापार से इस मार्ग का नाम पड़ा, यद्यपि इस मार्ग से भारत से सूती वस्त्र और मसालों फारस से कीमती पत्थर और सामग्री, यूरोप एवं अरब देशों में बेची जाती थी।
नया रेशम मार्ग
करीब 20 देश- चीन, ईरान, इराक, सीरिया, तुर्की, बुल्गारिया, रोमानिया, चेक गणराज्य, जर्मनी, नीटरलैंड्स, मलेशिया, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और केन्या तथा तीन महाद्वीप इस प्रस्तावित परियोजना का हिस्सा हैं। इसकी संख्या बढ़ सकती है।
रेशम रणनीति
 चीन के प्रस्तावित रेशम मार्ग से क्षेत्र और उससे आगे चीन के संपर्क में सुधार होगा और विश्व के विभिन्न हिस्सों में चीन उद्योग और निवेश में वृद्धि होगी।
 बंदरगाहों और नौसैनिक अड्डों के निर्माण से तेल, गैस, खनिजों का परिवहन करने समुद्री मार्गों की सुरक्षा के साथ चीनी वस्तुओं का निर्यात बेरोक-टोक और बिना परेशानी के सुनिश्चित हो सकेगा।
 विभिन्न देशों में ढांचागत विकास से चीन की साॅफ्ट पाॅवर प्रदर्शित होगी और दूसरों से चीन का टकराव सीमित होगा।
 अंत में इससे चीन को एशिया और यूरोप में एक समानांतर विशाल भूमि और समुद्री ढांचा और तंत्र निर्मित करने का मौका मिलेगा। इससे अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिम को चुनौती दी जा सकेगी।
भारतीय द्वीपों को क्यों मजबूत सैन्य उपस्थिति की जरूरत
 भारी सैन्यीकृत हिंद महासागर क्षेत्र पर कड़ी नजर रखने के लिए
 समुद्री और तटीय सुरक्षा के साथ मुख्य भूमि से संचार संपर्क की सुरक्षा के लिए
 संपूर्ण हिन्द महासागर में चीन की रणनीति को मुकाबला करने के लिए
 देश के EEZ (द्वीपों सहित करीब 5.95 लाख वर्ग किमी. का EEZ है) की सुरक्षा के लिए
 डकैती, शिकार, नशीले पदार्थों की तस्करी और हथियार तस्करी पर लगाम लगाने के लिए
 समुद्री संचार मार्गों की सुरक्षा (लघु द्वीपों उदाहरण के लिए मलक्का जलडमरुमध्य के समीप के बिखरे नौवहन मार्ग)
प्रशांत तरफ से मलक्का को ठप करने के लिए दक्षिण चीन सागर पर नियंत्रण
दक्षिण चीन सागर विवाद क्या है
पूर्वनिर्धारित मंसूबे के अनुसार चीन दक्षिण चीन सागर पर पूर्ण नियंत्रण चाहता है। इसी क्षेत्र से भारत के लिए होने वाले परिवहन का एक बड़ा हिस्सा गुजरता है। इसके अलावा चीन प्रशांत तरफ से मलक्का पर नियंत्रण करने की सोच रखता है।
चीन दक्षिण चीन सागर में एक विवाद को बढ़ावा देने और उसका दुरुपयोग करने का कार्य कर रहा है।
चीन, फिलिपींस, वियतनाम, ब्रुनेई, मलेशिया और ताइवान सभी दक्षिण चीन सागर के द्वीपों और जल क्षेत्र पर परस्पर विरोधी दावे करते हैं। चीन एक नौ बिन्दुओं वाली रेखा के माध्यम से करीब संपूर्ण दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है, जिसका विस्तार अन्य देशों के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों (200 समुद्री मील तक का दोहन क्षेत्र) प्रतिदिन समुद्री मार्ग से 15mm बैरल तेल के परिवहन वाले क्षेत्र (वैश्विक आपूर्ति का 1/6 हिस्सा) तक विस्तृत है।
सकरबोरोघ शोअल के लिए 2012 में चीन और फिलिपींस के मध्य टकराव के बाद से संघर्ष की संभावना अक्सर बढ़ती है। चीन स्प्रैटली द्वीप पर अब हवाई पट्टी, सैन्य सुविधाओं का निर्माण कर रहा है।

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